महाभारत के पात्रों के नाम, उनके गुणों के अनुरूप क्यों?
महाभारत के पात्रों के नाम, उनके गुणों के अनुरूप क्यों?
महाभारत और गीता को पढ़ने से आप देखेंगे कि उनमें कौरवों के तथा स्वयं श्रीकृष्ण जी के जो नाम दिये गये हैं वे किन्ही अर्थों को लिये हुये हैं जो कि उन उन व्यक्तियों के गुण, कर्म, स्वभाव और प्रभाव के अनुरूप हैं। ये सभी के सभी नाम सहेतुक (Purposeful) हैं; ये यों ही संज्ञावाचक बेतुके से नहीं हैं। अतः ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि ये अनायास ही उनके माता-पिता द्वारा यदृच्छिया रख दिये हों बल्कि इनके अर्थों पर विचार करने से हम सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सभी पाण्डवों के नाम ‘धर्म-पक्ष’ और कौरवौं के नाम ‘अधर्म-पक्ष’ के वाचक हैं। ऐसा तो संभव प्रतीत नहीं होता कि कौरवों के माता-पिता ने अपने पुत्रों को दुर्योधन, दुःशासन, दुःसह, दुःशाल, दुर्धर्ष, दुरभषण, दुर्मुख, दुष्कर्ण, दुर्भद, दुर्विगाह, दुर्विमोचन, दुराधर इत्यादि नाम अपनी इच्छा से दिये हों, अर्थात् जानबूझकर अपने पुत्रों को ‘सुशासन’ नाम देने के बजाय ‘दुशासन’ नाम दिया हो। ‘दुः’ उपसर्ग तो दुख और दुष्टता आदि भावों को व्यक्त करने के लिये प्रयुक्त किया जाता है। तब कौन पिता अपने बहुत से पुत्रों के साथ इस उपसर्ग का प्रयोग करेगा। यहाँ तक कि अपनी पुत्री का नाम दुःशाला में ‘दुः’ उपसर्ग वाला ही चुना।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ये नाम किन्हीं के जन्म के समय के नाम या व्यक्तिवाचक नाम नहीं है बल्कि कवि ने ही किसी ऐतिहासिक सत्य को बताने के लिये या किसी नैतिक एवं अध्यात्मिक उपदेश को अलंकारों में समझाने के लिये अपने पात्रों को उनके अनुरुप दिये।
यदि ये नाम अपने महाकाव्य के लिये स्वयं कवि द्वारा निश्चित न किये गये होते तो प्रायः सभी नाम पात्रों के स्वभााव या कर्मों के अनुरुप न होते।
कौरवों और पाण्डवों की जो जन्म की कहानी महाभारत में दी गई है उससे भी यही प्रमाणित होता है कि कवि ने वास्तविक जन्म कहानी नहीं बताई। चाहे इसका कुछ भी कारण रहा हो। बल्कि किसी ऐतिहासिक वृतान्त के पात्रों के नाम और उनकी जन्म कथा को अलंकरिक अथवा रहस्यमयी (Mythoogical) भाषा में दिया है।
महाभारत के पात्रों के नाम, उनके गुणों के अनुरूप क्यों?
महाभारत और गीता को पढ़ने से आप देखेंगे कि उनमें कौरवों के तथा स्वयं श्रीकृष्ण जी के जो नाम दिये गये हैं वे किन्ही अर्थों को लिये हुये हैं जो कि उन उन व्यक्तियों के गुण, कर्म, स्वभाव और प्रभाव के अनुरूप हैं। ये सभी के सभी नाम सहेतुक (Purposeful) हैं; ये यों ही संज्ञावाचक बेतुके से नहीं हैं। अतः ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि ये अनायास ही उनके माता-पिता द्वारा यदृच्छिया रख दिये हों बल्कि इनके अर्थों पर विचार करने से हम सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सभी पाण्डवों के नाम ‘धर्म-पक्ष’ और कौरवौं के नाम ‘अधर्म-पक्ष’ के वाचक हैं। ऐसा तो संभव प्रतीत नहीं होता कि कौरवों के माता-पिता ने अपने पुत्रों को दुर्योधन, दुःशासन, दुःसह, दुःशाल, दुर्धर्ष, दुरभषण, दुर्मुख, दुष्कर्ण, दुर्भद, दुर्विगाह, दुर्विमोचन, दुराधर इत्यादि नाम अपनी इच्छा से दिये हों, अर्थात् जानबूझकर अपने पुत्रों को ‘सुशासन’ नाम देने के बजाय ‘दुशासन’ नाम दिया हो। ‘दुः’ उपसर्ग तो दुख और दुष्टता आदि भावों को व्यक्त करने के लिये प्रयुक्त किया जाता है। तब कौन पिता अपने बहुत से पुत्रों के साथ इस उपसर्ग का प्रयोग करेगा। यहाँ तक कि अपनी पुत्री का नाम दुःशाला में ‘दुः’ उपसर्ग वाला ही चुना।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ये नाम किन्हीं के जन्म के समय के नाम या व्यक्तिवाचक नाम नहीं है बल्कि कवि ने ही किसी ऐतिहासिक सत्य को बताने के लिये या किसी नैतिक एवं अध्यात्मिक उपदेश को अलंकारों में समझाने के लिये अपने पात्रों को उनके अनुरुप दिये।
यदि ये नाम अपने महाकाव्य के लिये स्वयं कवि द्वारा निश्चित न किये गये होते तो प्रायः सभी नाम पात्रों के स्वभााव या कर्मों के अनुरुप न होते।
कौरवों और पाण्डवों की जो जन्म की कहानी महाभारत में दी गई है उससे भी यही प्रमाणित होता है कि कवि ने वास्तविक जन्म कहानी नहीं बताई। चाहे इसका कुछ भी कारण रहा हो। बल्कि किसी ऐतिहासिक वृतान्त के पात्रों के नाम और उनकी जन्म कथा को अलंकरिक अथवा रहस्यमयी (Mythoogical) भाषा में दिया है।
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