एक ऐसा सच जिसे जानना सबके लिये जरूरी हैः-
एक ऐसा सच जिसे जानना सबके लिये जरूरी हैः-
प्राचीन काल से ही पुरुष की महान प्रेरक शक्ति महिला (वह माँ, बहिन, बेटी, पत्नि या प्रेमिका कोई भी हो सकती है) को प्रसन्न करने की उसकी प्रबल इच्छा रही है। प्रागैतिहासिक काल से शिकारी के रूप में मनुष्य अपनी श्रेष्टता सिद्ध कर पाता था। क्योंकि उसमें महिला की दृष्टि में महान दिखने की प्रबल चाहत होती थी। उसकी यह प्रकृति आज भी नहीं बदली। तरीका आवश्य ही बदल गया है। आज का शिकारी महिला को प्रसन्न करने के लिये विभिन्न जंगली पशुओं की खालें तो नहीं लाता अब उन खालों, जंगली वस्तुओं आदि का स्थान अच्छे मँहगे कपड़े, कार, गहने एवं दौलत ने ले लिया है। वह इन चाजों को चयन महिलाओं को प्रसन्न करने की इच्छा से करता है। महिलाओं को प्रसन्न करने की इच्छा तो वही है
प्राचीन काल से ही पुरुष की महान प्रेरक शक्ति महिला (वह माँ, बहिन, बेटी, पत्नि या प्रेमिका कोई भी हो सकती है) को प्रसन्न करने की उसकी प्रबल इच्छा रही है। प्रागैतिहासिक काल से शिकारी के रूप में मनुष्य अपनी श्रेष्टता सिद्ध कर पाता था। क्योंकि उसमें महिला की दृष्टि में महान दिखने की प्रबल चाहत होती थी। उसकी यह प्रकृति आज भी नहीं बदली। तरीका आवश्य ही बदल गया है। आज का शिकारी महिला को प्रसन्न करने के लिये विभिन्न जंगली पशुओं की खालें तो नहीं लाता अब उन खालों, जंगली वस्तुओं आदि का स्थान अच्छे मँहगे कपड़े, कार, गहने एवं दौलत ने ले लिया है। वह इन चाजों को चयन महिलाओं को प्रसन्न करने की इच्छा से करता है। महिलाओं को प्रसन्न करने की इच्छा तो वही है किन्तु सभ्यता के विकास के साथ ही महिला को प्रसन्न करने का तरीका बदल गया है। ढ़ेर सारी दौलत का इकट्ठा करना, शक्ति को प्राप्त करना, एवं शोहरत के उच्चतम शिकर को छूने में महिलाओं को प्रसन्न करने की प्रबल इच्छा ही काम करती है।
यदि पुरुष के जीवन से महिलाओं को निकाल दिया जाये तो अधिकांश पुरुषों के लिये उनकी ढेर सारी दौलत उनके लिये व्यर्थ हो जायेगी। उनकी शक्ति सुप्त हो जायेगी। शोहरत का उनके लिये कोई मायना नहीं रहेगा।
पुरुष की महिला को प्रसन्न करने की इचछा ही महिला की वह शक्ति है जो पुरुष को बना भी सकती है और मिटा भी सकती है। जो महिला पुरुष की इस प्रकृति को समझती है एवं कूटनीतिज्ञ तरीके से उसे संतुष्ट करने में सक्षम एवं सफल होती है, वह अन्य महिलाओं की प्रतियोगिता के डर से मुक्त हो जाती है।
अन्य लोगों के साथ या दृष्टि में पुरुष अपने अदभ्य साहस एवं इच्छा शक्ति से “विराट” हो सकता है, लेकिन अपनी पसंद की महिलाओं से शासित जो जाता है। अधिकांश पुरुष अपनी पसंद की महिलाओं से शासित होने की बात सामान्यतः स्वीकार नहीं करते, क्योंकि यह उसका स्वाभाव होता है कि वह मानव जाति में शक्तिशाली समझा जाना चाहता है। यह भी सत्य है कि विदुषी महिला पुरुष के इस स्वभाव या गुण को जानकार भी अनजानी बनी रहती है और वह उस पर शासन करने के लिये ऐसी बनी रहना भी चाहती है।
कुछ पुरुष जो कि बुद्धिमान होते हैं, जानते है कि कोई पुरुष सही महिला के प्रभाव के बिना न तो सुख प्रप्त कर सकता है और न ही कभी पूर्ण संतुष्ट हो सकता है। इसी कारण से वह अपनी पत्नि, प्रेमिका, माँ, बहिन, बेटी से प्रभावित हो रहे होते हैं तथा कूटनीति से इस प्रभाव के विरुद्ध विद्रोह करने की सोचते भी नहीं हैं।
जो पुरुष इस महत्वपूर्ण सच्चाई को नहीं समझ पाता या स्वीकार नही कर पाता, वह अपने आपको उस शक्ति से वंचित कर देता है जो पुरुष को सफलता दिलाने में इतनी अधिक मददगार होती है कि जितनी अन्य सभी शक्तियाँ मिलकर भी नहीं।
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