बगावत
खिड़कियों से देख लो, नेताओं थोड़ा झाँककर,
आ गई जनता बगवत के लिये मैदान में।
तुम अगर चेते न अब, जनता की तुमने न सुनी,
भीड़ जायेगी बदल यह, एक दिन तूफान में।
न सिसायत यह रहेगी, न रहेंगी कुर्सियाँ,
सोई थी जनता जगाया, आम इक इंसान ने। (अरविन्द केजरीवाल)
राज्य का सूरज नहीं था डूबता जिसका कभी,
गोरो की सत्ता गई थी, तुम हो किस अभिमान में।
तुम समझते पार्टी यह, सिमटी है कुछ लोगो तक,
भीड़ है कितनी अधिक, अरविन्द के आवाहन में।
तुम समझते हो मजा सत्ता में है सबसे अधिक,
हम समझते हैं मजा बस देश पर कुर्बान में।।
- खिड़कियों से देख लो, नेताओं थोड़ा झाँककर,
- आ गई जनता बगवत के लिये मैदान में।
- तुम अगर चेते न अब, न ये जनता की सुनी,
- भीड़ जायेगी बदल यह, एक दिन तूफान में।
- न सिसायत यह रहेगी, न रहेंगी कुर्सियाँ,
- सोई थी जनता जगाया, आम इक इंसान ने। (अरविन्द केजरीवाल)
- राज्य का सूरज नहीं था डूबता जिसका कभी,
- गोरो की सत्ता गई थी, तुम हो किस अभिमान में।
- तुम समझते पार्टी यह, सिमटी है कुछ लोगो तक,
- भीड़ है कितनी अधिक, अरविन्द के आवाहन में।
- तुम समझते हो मजा सत्ता में है सबसे अधिक,
- हम समझते हैं मजा बस देश पर कुर्बान में।।
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