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हम ऐसे खुदा को क्यों मानें?

samajik kranti
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यह दोहे केवल उन आदरणीय ब्लॉगर भाइयों को इंगित करके लिखे गये हैं। जो धर्म को साम्प्रदायिक रूप देकर तथा उसे व्यापार बनाकर अपना जीवन यापन करके दूसरे के मत की आलोचना करना का उद्देश्य बनाकर चलते हैं। एक आदरणीय ब्लॉगर भाई ब्याज, नशा तथा सन्यास आश्रम की आलोचना बिना किसी आधार के करते हैं। ब्याज को अस्वीकार करना तो वैसा ही है जैसे कर्म करके फल को त्याग देना। यह तो अज्ञानता है। दूसरा ऐसा कौन है जो नशा नहीं करता। किसी को भक्ति का नशा, किसी को ब्लॉग लिखने का नशा, किसी को धन कमाने का नशा, किसी को प्यार करने का नशा, किसी को साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने का नशा, किसी को सत्ता का नशा, किसी को दूसरे सम्प्रदाय का नशा। संयास का वास्तविक अर्थ है सत्य एवं शांति की खोज, जो केवल एकांत या तनहाई में प्राप्त होती है। हमारे संयासी केवल संयासी नहीं थे, अपितु महान वैज्ञानिक भी थे। शिव जी प्रथम महान सर्जन थे, ब्रह्रा जी अस्त्र-शस्त्रों के अविष्कारक आदि। महान खोजे एकांत में ही हुई हैं, एकांतवास यानी  संयास आश्रम। कमियाँ सभी सम्प्रदायों में हैं। कमियाँ अपनी देखो दूसरों की क्यों देखते हो। यह तो ऐसा ही हुआ कि बीमार तो खुद हैं और इलाज करने चले पड़ोसी का। भाई आप अपना इलाज करों। हम तो अपना इलाज कर ही रहे हैं।
हमारी जो बीमारियाँ हैं वो असाद्ध नहीं हैं हम उसका इलाज कर ही लेगें। हमने पहिले भी किया है। सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा निषेध से अंततः छुटकारा पा ही लिया। लेकिन आपके शरीर की बीमारियाँ असाध्य हैं, इसका कारण है कि आप उन्हें बीमारियाँ मानते ही नहीं है।
ऐसे ही महान आदरणीय धर्म प्रचारक से अपनी कुछ जिज्ञासाओं को शांत करने के उद्देश्य से दोहात्मक प्रश्न इस विश्वास से खड़े कर रहा हूँ कि उनसे आशीर्वाद रूपी उत्तर प्राप्त होगा। यह दोहे किसी की साम्प्रदायिक भावनाओं को आहत करने के लिये नहीं लिख रहा हूँ, अपितु सत्य की खोज में लिख रहा हूँ। यदि किसी की साम्प्रदायिक भावना आहत हो तो आहत होने से पूर्व ही क्षमा माँगता हूँ।
यह दोहे विभिन्न सम्प्रदायों के महान ग्रन्थों के सामान्य अध्ययन करने के उपरांत लिखे गये हैं। यह काल्पनिक नहीं हैं। दूसरे सम्प्रदाय की पुस्तकें  भी पढ़े और सत्य को जाने।

मुझे जो ज्ञान प्राप्त हुआ है वह इस प्रकार हैः-
ईश्वर अन्यायी, अभिमानी, झूठा और छली, अल्पज्ञ, भुलक्कड़, पक्षपाती, वचन भंग करने वाला, पापी, अपराधी तथा जादूगर है। वह सर्वशक्तिमान नहीं है,सर्वज्ञ नहीं है औरसर्वव्यपाक नहीं है। निम्न दोहों से मैंने यही साबित करने का प्रयास किया है।

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धर्म न माने आपका, उसका कर दो कत्ल।
हमें खुदा ने किसलिये, दी है ऐसी अक्ल??

पाप करो पाओ क्षमा, बढ़ेंगे निश्चित पाप।
न्यायी कैसे बन गये, अरे खुदा जी आप।।
पहिले भारी पाप कर, फिर ले माफी माँग।
धर्म ग्रन्थ में है लिखा, खुदा करेगा माफ।।

लेकर तेरे नाम को, शत्रु दुख, ले प्राण।
नाम खुदा का कर रहे, वह पापी बदनाम।।

दिल में मुहर लगाय के, पापी दिया बनाय।
दोष नहीं कुछ जीव का, पापी खुदा कहाय।।

जो उसके अनुयायी हैं, बस उसको उपदेश।
मारो, काटो, लूट लो, दूजे मत के शेष।।

क्षमा पाप से यदि करे, सब पापी बन जाय।
इसीलिये संसार में बढ़ हुआ अन्याय।।

करे प्रसंशा स्वयं की, वह कैसा भगवान।
मुझको तो ऐसा लगे, खुदा में है अभिमान।।

मेरे मत के लोग ही, जा पायेंगे स्वर्ग।
दूजे मत के वास्ते, बना दिया क्यों नर्क?

दूजे मत अनुयायी जो, काफिर देंय पुकार।
ऐसे तो बन जायगा, काफिर यह संसार।।
जिसको चाहे दे दया, जिसपर चाहे क्रोध।
पक्षपात यदि जो करे, नहीं खुदा के योग्य।।

मारा मेरे भक्त को, दोजख में दे डाल।
मारे मेरे शत्रु को, स्वर्ग जाय, तत्काल।।
दुष्ट हो अपने धर्म का, उसको मित्र बनाय।
सज्जन दूजे धर्म का, उसके पास न जाय।।

दूजे मत का इसलिये, उसको दिया डुबाय।
जो उसके अनुयायी हैं, उसको पार कराय।।

करवाये भगवान सब, पुण्य होय या पाप।
फल क्यों न पाये खुदा, चाहे हो अपराध??
पक्षपात कहलायगा, फल यदि खुदा न पाय।
क्षमा खुदा को यदि मिला, तो यह कैसा न्याय।।

जिस फल से पापी बने, लगा दिया क्यों वृक्ष।
जिसके खाने के लिये, बात नहीं स्पष्ट।।
यदि स्वयं के वास्ते, तो कारण बतलाय।
आदम से पहिले उसे, खुदा नहीं क्यों खाय।।

बारह झरने थे झरे, शिला पे डण्डा मार।
ऐसा होता अब नहीं, क्यों विकसित संसार??
निन्दित बंदर बनोगे, कहकर दिया डराय।
झूठ और छल खुदा जी, आप कहाँ से पाय।।

हुक्म दिया औ हो गया, कैसे हुआ बताय।
किसको दिया था हुक्म ये, मेरी समझ न आय।।

पाक स्थल जो बनाया, क्यों न प्रथम बनाय।
प्रथम जरूरत नहीं क्या, या फिर सुधि न आय।।

नहरें चलती स्वर्ग में, शुद्ध बीबियाँ पाय।
इससे अच्छा स्वर्ग तो, पृथ्वी पर मिल जाय।।
कैसे जन्मी बीबियाँ, स्वर्ग में, आप बताय।
रात कयामत पूर्व ही, उन्हे था लिया बुलाय।।
औ उनके खाविन्द क्यों, नहीं साथ में आय?
नियम कयामत तोड़कर, किया है कैसा न्याय??
रहे सदा को बीबियाँ, पुरुष न रहे सदैव।
खुदा हमारे प्रश्न का शीघ्र ही उत्तर देव??

मृत्य को जो जीवित करे, औ जीवित को मृत्य।
मेरा यह है मानना, नहीं ईश्वरीय कृत्य।।

किससे बोला था खुदा, किसको दिया सुनाय?

बिना तर्क की बात को, कैसे माना जाय?

खुदा न करते बात अब, कैसे करते पूर्व??

तर्कहीन बातें बता, हमको समझे मूर्ख।।
हो जा कहा तो हो गया, पर कैसे बतलाय?
क्योंकि पहिले था नहीं, कुछ भी खुदा सिवाय।।

बिना तर्क की बात को, कैसे माना जाय??
तौबा से ईश्वर मिले, और छूटते पाप।
इसी सोच की वजह से, बहुत बड़े अपराध।।
ईश्वर वैदक है नहीं, यह सच लीजै मान।
सच होता तो बोलिए, क्यों रोगी भगवान??

जड़ पृथ्वी, आकाश है, सुने न कोई बात।
क्या ईश्वर अल्पज्ञ था, उसे नहीं था ज्ञात??

बही लिखे वह कर्म की, क्या है साहूकार?
रोग भूल का क्या उसे, इस पर करें विचार??

आयु पूर्व हजार थी, अब क्यों है सौ साल?
व्यर्थ किताबें धार्मिक, मेरा ऐसा ख्याल।।

सच सच खुदा बताइये, क्यों जनमा शैतान?

तेरी इच्छा के विरुध, क्यों बहकाया इंसान??
बात न माने आपकी, नहीं था तुमको ज्ञात।

तुमने उस शैतान को, क्यों न किया समाप्त??

मुर्दे जीवित थे किये, अब क्यों न कर पाय?
मुर्दे जीवित जो किये, पुनर्जन्म कहलाय।।

कहीं कहे धीरे कहो, कहते कहीं पुकार।
यकीं आपकी बात पर, करूँ मैं कौन प्रकार??

अपने नियम को तोड़ दे, मरे मैं डाले जान।
लेय परीक्षा कर्म की, कैसा तूँ भगवान??

हमें चिताता है खुदा, काफिर देय डिगाय।
कैसे ये बतला खुदा, तूँ सर्वज्ञ कहाय??

बिना दूत के क्या खुदा, हमें न देता ज्ञान?
सर्वशक्ति, सर्वज्ञ वह, मैं कैसे लूँ मान??

बिना पुकारे न सुने, मैं लूँ बहरा मान।
मन का जाने हाल न, कैसा तूँ भगवान??

व्यापक हो सकता नहीं, जो है आँख दिखाय।
वह जादूगर मानिये, चमत्कार दिखलाय।।

पहुँचाया इक देश में ईश्वर ने पैगाम।
ईश्वर मानव की कृति लगता है इल्जाम।।

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इस तरह स्पष्ट होता है कुछ धार्मिक पुस्तकों के आधार पर  खुदा, ईश्वर या गोड यदि है तो अन्यायी, अत्याचारी, हत्यारा, झूठा, छली, अल्पज्ञ, भुलक्कड़,पक्षपाती, अभिमानी, पापी, अपराधी तथा जादूगर है। वह न तो सर्वज्ञ है, न सर्वशक्तिमान, न व्यापक और न ही बात तथा नियम का पक्का है।


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