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शादी में दहेज, गंगा जली में शराब!

samajik kranti
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आमिर के दहेज प्रथा पर सत्य मेव जयते के शो में कोमल के
इंटरव्यू ने मेरे नयनों को इतना अधिक द्रवित कर दिया था कि
कि मुझमें इसे आगे देखने की सामर्थ न रही। यह अतिशयोक्ति नहीं
है, अपितु सच्चाई है। यही विचार आया मन में क्या सचमुच हम
पशु हैं? जैसा कि हमारे कुछ आदरणीय ब्लॉगरों के आलेखों
में भी दृष्टिगोचर होता है। इनती अधिक यातनायें तो पशुओं भी किसी
पशु या अन्य जीव को नहीं देते होगें। यह कविता पोस्ट करते समय
भी कोमल का इंटरव्यू स्मृति पटल पर उभर आया है। रोकते
हुये भी अश्रु की अनवरत धार बह निकली है। यदि दहेज प्रथा का
समर्थन करने वालों तथा दहेज लेने वालों का हम समर्थन करते
हैं तो क्या हमें मानव कहलाने का हक है? धर्म की बड़ी बड़ी बातें करने
वाले, अपने आपको धर्म का रक्षक सिद्ध करने वाले, धर्म के नाम से
हिन्दुओं और मुसलमानों को भड़काकर अपनी राजनीति चलाने वाले,
आज कहाँ गये? क्यों खामोश हैं? इन्हें मानवता की रक्षा से कोई सरोकार
नहीं, ये तो अपने ईश्वर और धर्म तक ही सीमित हैं। क्योंकि यह इनका व्यसाय
है। धर्म नहीं है। बस अपने व्यसाय को धर्म के सुनहरे कपड़े से ढ़क कर उसके
विकृत रूप को छिपा देते हैं। मित्रों क्या आपको मेरी बातें सचमुच अतार्किक
एवं बकवास लगती हैं? क्या हमें कुछ सोचने और करने की जरूरत नहीं है?
मुझे जातिप्रथा, दहेज प्रथा, मृत्युभोज प्रथा मानवता के नाम पर कलंक सा लगती हैं।
प्रचीन काल में हमारे यहाँ एक और अमानवीय प्रथा सती प्रथा विद्वान थी।
विधवा औरत को भांग का नशा कराकर जबरजस्ती चिता पर बिठा दिया जाता
था। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हमारे पूर्वज सचमुच पशु थे।
मेरे परिवार में भी दो सती के मंदिर आज भी विद्मान हैं। हजारों साल पुराने
हो गये है। जो मुझे चिढ़ाते हैं और हमारी पशुता की और इशारा करते हैं।
भाई अब तो इंसान बनो। खुलकर दहेज प्रथा का विरोध करो।
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शादी में दहेज, गंगाजली में शराब।
आमिर रुलाया तूने हमें बेहिसाब।।
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कितने अधिक हम हो गये हैं भ्रष्ट,
मानवता हमारी शायद हो गई है नष्ट।
सास भी बहू थी कभी सोचती नहीं,
सास बनते ही बहुओं को देती कष्ट।।
लगता दहेज यह, हड्डी ज्यों कबाब।
शादी में दहेज गंगाजली में शराब।।
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ये दहेज इसमें हमारा भी है दोष,
खुल के न करें हम इसका विरोध।
बेटे की हो शादी कभी सोचते नहीं,
बेटी की हो शादी, तभी आता हमें होश।।
बेटियों के लिये बनी यह अभिशाप।
शादी में दहेज गंगा जली में शराब।।
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आइयेगा मेरे साथ लीजिये कसम,
दहेज को मिटाकर ही लेंगे हम दम।
दहेज वाली शादी का करो बहिस्कार,
बेटे में दहेज तो वहाँ न जायं हम।।
बोलो कौन कौन है यहाँ पे मेरे साथ।
शादी में दहेज गंगाजली में शराब।।
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शादी दिन दूल्हा बाप बनता दबंग,
समाज के लिये दहेज बना है कलंक।
आओ खुद से ही करें हम शुरुआत,
समाज से दहेज का मिटायें आतंक।।
जाने क्या समझते हैं दूल्हे के बाप।
शादी में दहेज गंगाजली में शराब।।
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दहेज की जगह करें बेटी पे ये खर्च,
पढ़ाके बेटियों का करें, हम उत्कर्ष।
बेटियों को बेटों सा ये लायक बनायँ,
दहेज नाम पे न करें एक पैसा खर्च
बेटी के लिये न ढ़ूढ़े लालची दमाद।
शादी में दहेज गंगाजली में शराब।।
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