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बैरकपुर छावनी, कलकत्ता से मात्र 16 कि.मी. दूर।
कारतूस बनाने वाली फैक्ट्री, बहुत थी मसहूर।।
अन्य जातियों की तरह, दलित मजदूर भी वहाँ करते थे काम।
एक दलित मजदूर, जिसका मातादीन भंगी था नाम।।
उसे प्यास लगी, उसने एक सैनिक से माँगा जल।
उसे ब्राह्मण सैनिक का नाम था मंगल।।
पानी नहीं दिया उसे, डर था कहीं मेरा धर्म न हो जाय नष्ट।
उसकी इस सोच पर, दलित मजदूर को हुआ कष्ट।।
मुँह से गाय और सुअर की चर्बी के कारतूस खोलते हो।
इस पर भी अपने आपको ब्राह्मण बोलते हो।।
तुम्हारे ब्राह्मण धर्म को धिक्कार है।
एक प्यासे को पानी न पिला पाय, वह धर्म बेकार है।।
यह सुनकर मंगल पाण्डे हुआ बहुत हुआ चकित।
अंग्रेज करते रहे अभी तक हमें भ्रमित।।
उसकी आँखे क्रोध से लाल और पीड़ा से भर आई।
तुमने मेरी आँखें खोल दी मेरे हिन्दुस्तानी भाई।।
हम जैसे लोगों में ब्राह्मणत्व कहाँ से आयेगा।
अब यह हिन्दुस्तानी, एक हिन्दुस्तानी भाई को पानी जरूर पिलायेगा।
मातादीन भंगी ने मंगल पांडे को बना दिया प्रथम क्राँतिकारी।
हम मंगल पाण्डे से पहिले, मातादीन भंगी के हैं आभारी।।
जंगल में आग की तरह फैल गई, जो उन दोनों के बीच जो बात हुई।
10 मई 1857 को काँति की काँति की शुरुआत हुई।।
पहली दफा अंग्रेजों का शासन हिला था।
क्राँतिकारी गिरफ्तार हुये, चार्टसीट में मातादीन का नाम पहिला था।।
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यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि जिस छुआछूत के कारण हम गुलाम हुये थे,
उसी छुआछूत के कारण एक अंग्रेजी सेना में कार्यरत युवक क्राँतिकारी बन गया।
इस तरह की घटनाओं से लगता है कि हमारे पुर्वजों को देश से प्यारा धर्म एवं जाति थी,
अन्यथा हम सैकड़ों वर्ष तक विदेशियों के गुलाम न रहते। हमारी इसी धर्म एवं जातिगत
आस्था के कारण आज की ये राजनैतिक भ्रष्ट जमात हम पर शासन कर रही है। भ्रष्टाचार
के मामले में सभी दल के नेता एक जुट हैं। क्या अब समय नहीं आ गया है कि हमें जन्म
आधारित जातिप्रथा को समाप्त करके वेद में वर्णित कर्माधारित वर्णाव्यवस्था अपनाना
चाहिये।
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