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जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना

samajik kranti
samajik kranti
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जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।
बुझे दीप, दीपक है दिल को बनाना।।
………
गुलामी में तुमने बहुत रह लिया है,
सितम जालिमों का बहुत सह लिया है।
नहीं अब सहेंगे सितम जालिमों के,
सितमगर से हमने, तो ये कह दिया है।
………
रंग दे बसंती का गूँजे तराना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
…..
यहाँ लोकतंत्र है, मरणावस्था,
बदलना है हमको, ये जर्जर व्यवस्था।
अमीरों को केवल हैं, अधिकार सारे,
गरीबों की हालत, हुई देखों खस्ता।
……..
दशा देश की अब है सबको बताना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
…….
किसानों की हालत, गई कितनी गुजरी,
पैंसठ बरस में भी, हालत न सुधरी।
वादे चुनावों में, करते हैं सब दल,
सरकार जिसकी भी, वादों से मुकरी।
………
सुधि इनको वादों की, हमको दिलाना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
………
मकां जो बनाता है, फुटपाथ पर घऱ,
जो अन्न उगाता, गया भूख से मर।
जो कपड़े बनाता, रहा उम्र सारी,
मरा तो नहीं था, कफन उसके तन पर।
……….
बदलना है हम सबको, मिलके जमाना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
…..
शिक्षा हमारी, अभी भी पुरानी,
शिक्षा को पाके भी पाई नकामी।
न ही नौकरी, न ही व्यापार होता,
शिक्षा की नीति नई है बनानी।
मैंकाले की शिक्षा प्रणाली हटाना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
……..
न खेतों में पानी, सड़क है न बिजली,
पिछड़ी जो जाति, अधिक आज पिछड़ी।
बातें केवल, आँकड़ों की हैं करते,
कहते बना देंगे, भारत को इटली।।
बातों में इनकी, हमें अब न आना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
………
जाति प्रथा हमको, करती कलंकित,
क्यों अब तलक, मृत्यु भोज है जीवित।
दाइज प्रथा का, बहुत बोलवाला,
अमीरों के घर में ये, पलती है समुचित।।
तमराज का हमको, शासन हटाना।

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