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जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।
बुझे दीप, दीपक है दिल को बनाना।।
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गुलामी में तुमने बहुत रह लिया है,
सितम जालिमों का बहुत सह लिया है।
नहीं अब सहेंगे सितम जालिमों के,
सितमगर से हमने, तो ये कह दिया है।
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रंग दे बसंती का गूँजे तराना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
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यहाँ लोकतंत्र है, मरणावस्था,
बदलना है हमको, ये जर्जर व्यवस्था।
अमीरों को केवल हैं, अधिकार सारे,
गरीबों की हालत, हुई देखों खस्ता।
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दशा देश की अब है सबको बताना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
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किसानों की हालत, गई कितनी गुजरी,
पैंसठ बरस में भी, हालत न सुधरी।
वादे चुनावों में, करते हैं सब दल,
सरकार जिसकी भी, वादों से मुकरी।
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सुधि इनको वादों की, हमको दिलाना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
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मकां जो बनाता है, फुटपाथ पर घऱ,
जो अन्न उगाता, गया भूख से मर।
जो कपड़े बनाता, रहा उम्र सारी,
मरा तो नहीं था, कफन उसके तन पर।
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बदलना है हम सबको, मिलके जमाना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
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शिक्षा हमारी, अभी भी पुरानी,
शिक्षा को पाके भी पाई नकामी।
न ही नौकरी, न ही व्यापार होता,
शिक्षा की नीति नई है बनानी।
मैंकाले की शिक्षा प्रणाली हटाना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
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न खेतों में पानी, सड़क है न बिजली,
पिछड़ी जो जाति, अधिक आज पिछड़ी।
बातें केवल, आँकड़ों की हैं करते,
कहते बना देंगे, भारत को इटली।।
बातों में इनकी, हमें अब न आना।
जागे हैं हम, हमको, सबको जगाना।।
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जाति प्रथा हमको, करती कलंकित,
क्यों अब तलक, मृत्यु भोज है जीवित।
दाइज प्रथा का, बहुत बोलवाला,
अमीरों के घर में ये, पलती है समुचित।।
तमराज का हमको, शासन हटाना।
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