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क्राँति का आवाहन

samajik kranti
samajik kranti
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न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र।
कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र।
………
अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन हो,
मैं करूँ निवेदन कवियों से, लिख क्रांति के अंगार मित्र।
………
मुझको लगता है राजनीति, बन गई आज है वेश्यालय,
तलवार बनाकर कलमों को, करते इनका संहार मित्र।
……….
जितनी भी क्राँति हुई अब तक, कवियों की प्रमुख भूमिका थी,
कवियों में इतनी ताकत है, वो बदल सके सरकार मित्र।
……….
क्या कर्ज लिये मर जायेंगे, जो भारत माँ के हम पर हैं,
क्यों न हम ऐसा कर जायें, चुक जाये माँ उपकार मित्र।
……….
ये जीवन बहुत कीमती है, मुझको क्या सबको मालुम है,
क्यों जाया जीवन मूल्यवान, ये बातों में बेकार मित्र।
……….
हम लिखें क्राँति की रचनायें, निश्चित ही परिवर्तन होगा,
हम सोचे सब परिवर्तन की, सब करें क्राँति हुँकार मित्र।
……….

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