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गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
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क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।
कैसे कहूँ गणतंत्र है, यह तो नहीं गणतंत्र है।।
जीतते नेता यहाँ पर, जाति के आधार पर,
जीतकर सेवा करेंगे , कर रहे व्यापार पर,
मेरे समझ आती नहीं है यह व्यवस्था देश की,
वोट बहुमत में न पाया, बन गई सरकार पर।
नापसंदी का हमें, अधिकार क्योंकि है नहीं,
यह समस्या तो जटिल है, चिंतनिय अत्यंत है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।।
जिसका बड़ा अपराध है उसको बड़ा मिलता है पद,
अफसोस कि यह बात है, अपराधि आधे सांसद,
अपराध पहले कीजिये, फिर राजनीति में घुसो,
अब राजनीति बन गई, अपराधियों का तो कवच।
कल तलक कैदी बने थे, सांसद हैं आज वो,
केश उनपर सैकड़ों हैं, जेल में जो बंद है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।।
चल रहे अब भी यहाँ, अंग्रजों के कानून हैं,
सरकार में बैठा है वो, जिसने किया था खून है,
कल तलक गुण्डा था अपने, क्षेत्र का माना हुआ,
लग रहा संसद में जाके, वह बड़ा मासूम है।
होगी न इसको सजा, हत्याओं के अपराध से,
कानून मंत्री बनने का, उसने रचा षडयंत्र है।
क्या यही गणतंत्र है,यह किस तरह गणतंत्र है।।
अधिकांश वह मंत्री बने, कोई न कोई दाग है,
जुर्म की दुनियाँ मे उनकी, ये अभी भी धाक है।
जानते हैं सब उसे, चारा घुटाला था किया,
बन गया है वह भी मंत्री, पशुधन का ये विभाग है।।
अगले चुनावों के लिये, पैसा तो उसको चाहिये,
जानता है लूटने का, वह पुराना मंत्र है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।।
इक तरफ तो बोलते है, नारियाँ पुजतीं यहाँ,
मुझको तो हर घर में पीड़ित, नारियाँ दिखती यहाँ।
हर रूप ये नारियों का, हो रहा शोषण बहुत,
सिर्फ धन के ही लिये क्यों, नारियाँ जलती यहाँ।।
हर धर्म में हर जाति में, दहेज प्रचलन है बहुत,
वैसे तो ये कानून में, इस पर कड़े प्रतिबंध है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।।
हमसे आगे देश क्यों, आजाद हमसे बाद हैं,
वोट देते ही समय, लगता कि हम आजाद हैं।
जनवरी छब्बीस को या, जो कि है पन्द्रह अगस्त,
हम हुये आजाद थे, करते ये केवल याद हैं।।
आजाद भारत है हुआ, जनता मगर परतंत्र है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।।
राजनीति चल रही, अब भी यहाँ परिवार की,
हैसियत कुछ भी नहीं, उसके लिये सरकार की।
जब टिकट बँटने को आये, नाम तो कई ने दिये,
निकली है नेताओं के, लिस्ट रिश्तेदार की।।
वोट देने की हि केवल, लोकशाही है मिली,
पाँच सालों के लिये फिर, राजा का ही तंत्र है।
क्या यही गणतंत्र है, यह नाम का गणतंत्र है।।
बेटा-बेटी में अभी भी, इतना क्यों अंतर अधिक,
क्यों नहीं अब तक हुई स पर पहल कोई सार्थक।
सिर्फ हम बातें ही करते, पर अमल करते नहीं,
कानून में अधिकार सब, परिवार में मिलते न हक।।
एक बेटी की नहीं, पीड़ा है यह हर एक की,
इस समस्या का मुझे, आये नजर न अंत है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।।
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